Tuesday 26 January 2016

माड़सा छब्बीस जनवरी कित्ती तारीख को है...

सर्द सुबह जल्दी उठकर बिना सलवटों की स्कूल वर्दी, परेड, मिठाई, ईनाम, नृत्य, मस्ती। गणतंत्र दिवस का अपना नॉस्टेलजिया है।
एक वक्त बाद ये चीज़ें पीछे छूट जाती है। गाँवों में राष्ट्रीय पर्व की अलग ही झलक होती है।
ग्रामीण स्कूलों में बच्चों को साल में दो ही दिन तो जलवा दिखाने का मौका मिलता है।
ये बचपन के दिन कहीं भी देशभक्ति गीत गूंजते ही आँखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगते है।

(फोटो: सुमेर सिंह राठौड़)

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