रात
गहरी होती जा रही थी. बाबूजी की खाँसी की आवाज़ की ठनक भी बढ़ती जा रही थी. खेत सूख गए थे और
भविष्य वीरान हो गया था. गौरइया गायब थी और आसमान में एक जहाज़ उड़ रहा था. समंदर
इंतज़ार में था और नदी लापरवाह हो गई थी. छाँव थी पर जुल्फों का अता पता नहीं
था. साँसों को गिन के देख लेता हूँ कि मेरे दिल का कितना हिस्सा मेरे पास बचा है.
(Photo; Sumer Singh Rathore)