Monday 28 March 2016

गाँव मेरा दिल-हाय मेरा दिल

रात गहरी होती जा रही थी. बाबूजी की खाँसी की आवाज़ की ठनक भी बढ़ती जा रही थी. खेत सूख गए थे और भविष्य वीरान हो गया था. गौरइया गायब थी और आसमान में एक जहाज़ उड़ रहा था. समंदर इंतज़ार में था और नदी लापरवाह हो गई थी. छाँव थी पर जुल्फों का अता पता नहीं था. साँसों को गिन के देख लेता हूँ कि मेरे दिल का कितना हिस्सा मेरे पास बचा है.



अनवरत यादें

जब मेरे साथ कोई नहीं होता. तुम्हारी यादें तब भी मेरे साथ रहती हैं. कदम-दर-कदम तब भी जब मैं दर-बदर होता हूं. निपट अंधेरे में भी और जबर उजाले में भी. एक तुम्हारी यादें ही तो हैं जो कभी धोखा नहीं देतीं. इकतरफा और हमेशा जेहन से लिपटी यादें. किसी गहरे कुएं में झांकने पर सुनाई पड़ने वाला वो  तुम्हारा अट्ठहास मेरी यादों के पिटारों का सबसे अहम कोना है, तुम सुन रही हो न?


Thursday 17 March 2016

मेरा दोस्त

एक दोस्त है। दूर है नाराज़ है। वह चाँद को पसंद करता है और मैं जमीन को। वह वक्त को मुट्ठी में बंद कर लेना चाहता है और मैं वक्त की धार में बहना चाह रहा हूँ। उसे नींद प्यारी है और मुझे जागृति। वह सम्पूर्ण बनना चाहता है और अधूरापन ही मेरी नियति है। वह गलती करना नहीं चाहता और मुझे गलतियों से सीखना अच्छा लगता है लेकिन वह मेरा है और मैं उसका।



Tuesday 8 March 2016

पंडवानी@DU

70 साल की औरत और महाभारत के रण की घनघोर गर्जना सी आवाज। तीजन बाई होना उम्र को चुनौती देना है। संगीत की लय में पिरोया गया एकल नाट्य अभिनय रंगमंच को नया 'स्पेस' उपलब्ध कराता है। पंडवानी लोक है जहाँ गति प्रवाह और जिजीविषा है। पंडवानी अतीत की याद है साथ ही भविष्य का स्वप्न भी। पंडवानी छत्तीसगढ़ की एक साँस है जिसकी भागीदारी भारत के जीवन में है। लोक दिल्ली पहुँच गया है।

चित्र साभार : अविनाश द्विवेदी 

Sunday 6 March 2016

माँ : कोंख में पलती दुनियाँ

तालाब के किनारे बैठ कर सभ्यता के गीत गाए जा सकते हैं। मंदिर की चौखट पर संस्कृति का निर्माण हो सकता है। संसद में दिया जा सकता है भाषण शांति और युद्ध पर एक साथ। आकाश में सप्तरंगी इन्द्रधनुष बन सकता है और गिर सकती है बर्फ़ पहाड़ों की ऊँचाईयों पर। यह सब जिंदगी का एहसास दे सकते हैं जिंदगी नहीं। जिंदगी हमेशा एक औरत के कोंख में पलती है जिसे सारी दुनियाँ माँ कहती है।



Tuesday 1 March 2016

जिंदगी@75 क्या है ?

मनुष्य की नैसर्गिक इच्छा स्वतंत्रता की है और इसके लिए वह बंधन का रास्ता चुनता है। हम सामान्यत: शब्दों के सहारे खुद को व्यक्त करते रहते है परन्तु जीवन का सबसे खुबसूरत पल वह होते हैं जहाँ शब्द न्यून हो जाते हैं और हम मुक्त हो जाते है। बंधन के बीच पल रही आजादी और खुशियों का ही नाम है जिंदगी@75

75 शब्द में जीवन का एक कोना
जहाँ धूप भी है और छाँव भी