शूद्रक का नाटक 'मृच्छकटिकम्' पढ़ते हुए प्रेम की संवेदना से अभिभूत होना स्वाभाविक है। आदर्श संपन्न धनहीन चारुदत्त
और उदात्त विचारस्वामिनी गणिका वसंतसेना के मध्य प्रस्फुटित होता प्रेम आज भी पाठक
को रोमांच से भर देता है। त्याग और समर्पण की राह पर चलकर प्रेम मंजिल पर पहुंचता है। प्रेम द्वन्द रचता है
और सृष्टि खुबसूरत और गतिशील हो जाती है। 'मृच्छकटिकम्’ के बहाने
इतिहास में देख आया कि प्रेम शाश्वत है और सरल भी।
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