यह हिन्दुस्तान
नहीं, यह पाकिस्तान नहीं, यह किताबिस्तान
है जहाँ शब्द व्यक्ति की जाति, रंग, धर्म पर कोई ध्यान नहीं देते है। शब्द त्याग की राह पर चलते
चलते शाश्वत हो जाते हैं। शब्द सभ्यता की पूंजी है। पुस्तकालय के क्षण पढाई के हो
सकते हैं और प्रेम के भी। यह भविष्य के लिए अतीत की मीठी याद हो सकते हैं जिसपर
लिखेंगे आप कोई कविता, कहानी और
बनायेंगें कोई प्यारा सा रिश्ता। चलिए पढ़ें...
(फोटो: सुमेर सिंह राठौड़)
No comments:
Post a Comment