जाड़े के मौसम में वह बसंत की
तरह आया था और मैंने उसे रात के एकांत में महसूस किया. सुबह मुलायम-सा सूरज निकला
तो वह रोशनी की किरन बना और मैं दूब पर पड़ी ओस की बूंद और हमने मिलकर रचा एक अनंत
दूरी का इन्द्रधनुष. धूप की बारिश में मैंने गंगा के गीत गाए और उसने रेत की धुन
छेड़ी. वक्त ने छुट्टी की घंटी बजायी और प्रेम जन्म के पूर्व ही निर्वासित हुआ.
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