Sunday 28 August 2016

पानी का गीत और रेत की धुन

जाड़े के मौसम में वह बसंत की तरह आया था और मैंने उसे रात के एकांत में महसूस किया. सुबह मुलायम-सा सूरज निकला तो वह रोशनी की किरन बना और मैं दूब पर पड़ी ओस की बूंद और हमने मिलकर रचा एक अनंत दूरी का इन्द्रधनुष. धूप की बारिश में मैंने गंगा के गीत गाए और उसने रेत की धुन छेड़ी. वक्त ने छुट्टी की घंटी बजायी और प्रेम  जन्म के पूर्व ही निर्वासित हुआ.
PC : Sumer

Saturday 27 August 2016

स्मार्ट शहर

अरसे बाद जब मैं अपने शहर पहुंचा तो देखा वहां सड़कों पर गढ्ढे नहीं थे बिजली भी कभी कभी कटती थी। हर जरूरी चीज अब आसानी से मिलने लगी, यहाँ तक की अच्छी नौकरी भी। लेकिन चिलचिलाती धूप से जलती गगनचुम्बी कंक्रीट की दीवारों में वो सुकून नहीं मिला जिसके लिये मैं वापस लौटा था। गंगा में पहले जैसा प्रवाह भी नहीं था। जानते हो क्यों?
क्योंकि मेरा शहर अब स्मार्ट सिटी बनने वाला है।

चित्र : अजय कुमार 

Friday 19 August 2016

पानी के किनारे कहानी

गाँव के ताल का पानी उतर गया था और ताल के किनारे कुत्तों का एक समूह कबड्डी के खेल की नक़ल उतार रहा था. ताल के बगल वाली नहर ने थोड़ा सा गर्भजल बचा रखा था ताकि नए प्रवाह का जन्म संभव हो सके. इन्सान की आवाजाही की कमी ने सूनेपन को और गहरा कर दिया था. पानी का उतर जाना जिंदगी का उतर जाना होता है चाहे वह ताल का हो या आँख का.
चित्र : पीयूष 
 

Monday 8 August 2016

खोने वाले लौट आते हैं क्या?

अचानक बादल काले हो गए। हवा रुक गई, पत्तों का शोर बंद हो गया। पीला गुबार दिखने लगा। बवंडर आ गया। पंछी चिल्लाने लगे। बंवडर के साथ आई तेज बारिश। पेड़ पर सफेद गालों वाली बुलबुल गाने लगी, बूंदों के साथ जुगलबंदी करके। पत्ते झरने लगे। सब कुछ हरा था। और एक दिन बुलबुल खो गई। पत्ते झड़ गए। गर्म हवा झुलसाने लगी। जाने कब फिर बदलेगा मौसम। खोने वाले कभी तो लौट आते होंगे?
(फोटो: सुमेर)