Sunday 17 January 2016

किताबों से जिन्दा हूँ मैं

किताबों के बीच बैठा हूँ। सूंघ रहा हूँ इतिहास और देख रहा हूँ भविष्य। किताब ! हे किताब ! तुम मेरे साथ क्यों जागती हो सारी रात जो डराने वाली सन्नाटे में डूबी रहती है। जिस रात चाँद भी अँधेरे से डर के छुप जाता हैं। सच बताऊँ केवल तुम्हारे कारण ही मैं परंपरा और शासन दोनों से ही लड़ लेता हूँ। तू साथ ही रहना मेरी किताब तेरे साथ रहकर कभी नहीं मरूँगा मैं।
P.C.-Peeyush Parmar
  

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