Friday 22 January 2016

जड़ों से दूर...

लोक जीवन कितना प्यारा होता है। उसकी खुशबू बनावटी नहीं बल्कि माटी की सौंधी महक होती है। लोक गीत, लोक कलाएँ इनका प्रकृति से जुड़ाव आकर्षित करता है।
हालांकि बदलाव शाश्वत नियम है और इसे हम रोक नहीं सकते। लेकिन प्रकृति के साथ छेड़छाड़, लोक जीवन का त्याग और इन सब बदलावों का हमारे जीवन पर प्रभाव सब देख रहे है।
कितने चिड़चिड़े और अजीब हो रहे हैं लगता है भीड़ में अकेले खड़े हैं।

(फोटो: सुमेर सिंह राठौड़)

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