Sunday 31 January 2016
सूरज का सातवाँ घोड़ा@मंडी हाउस
Saturday 30 January 2016
जूनून का ईंधन है असंतोष
असंतोष जीवन की सबसे मूल्यवान पूँजी है। जब तक हमारे मन में संतोष की भावना रहती है तब तक हमारे प्रयासों में जोश और तन्मयता की मात्रा इतनी नहीं हो सकती जितनी की मन में असंतोष होने पर। इसलिए बहुत जरूरी है कि हर वक़्त किसी न किसी तरह से खुद को असंतुष्ट रखा जाए। असंतोष ही जूनून का प्रेरक है हमें ये बात पता हो तो हम इसका अपने लिए फायदा उठा सकते हैं।
Thursday 28 January 2016
मैं अकेलापन हूँ
Tuesday 26 January 2016
तारे शहर से डरते हैं क्या
माड़सा छब्बीस जनवरी कित्ती तारीख को है...
26 जनवरी : देश में गण_तंत्र
Monday 25 January 2016
गण तंत्र में फंसा हुआ है
गण तंत्र में फंस हुआ है।
आवाज सुनाई दे रही है क्या किसी को मेरी।
यही तो तुम लोगों की प्रॉब्लम है।
आवाज सबकी सुनाई पड़ती है इस तंत्र में थोड़ी या ज्यादा।
लेकिन बोलते काहे नहीं हो यार।
आते काहे नहीं हो हाथ थामने, मदद करने।
हम अपना राग अलापे रहें तुम अपना।
देश का कर दें हैप्पी बड्डे और हाई वॉल्यूम पे गाना सुनें- ये देश है वीर जवानों का।
हैप्पी रिपब्लिक डे।
Sunday 24 January 2016
जाड़े की धूप और तुम्हारा साथ
Saturday 23 January 2016
'मृच्छकटिकम् : प्रेम की शाश्वत गाथा
Friday 22 January 2016
चौराहे पर धुंधलका
प्रकृति पूछ रही है...
जड़ों से दूर...
Thursday 21 January 2016
नींद से बगावत
Wednesday 20 January 2016
जो बोलते हैं वो झूठ होता है
यह रास्ता...
चित्र : अजय कुमार |
मेरा देश - किताबिस्तान
Tuesday 19 January 2016
क्या यूँ ही मर जायेंगें हम सब एक दिन ?
Sunday 17 January 2016
किताबों से जिन्दा हूँ मैं
Saturday 16 January 2016
एक खामोश डायरी को पढ़ना
Wednesday 13 January 2016
एक किसान पत्रकार का इंतज़ार
Monday 11 January 2016
सन्नाटे का सागर लबरेज़ हो चूका है !
Thursday 7 January 2016
बेसब्र सुबह ने शाम को गुनगुनाने न दिया
न जाने कौन सा खेल विधाता रचना चाहता था कि जिस उम्र में उसने ख्वाब बुनने की ताकत को अपनी उरूज़ पर पहुँचाया उस वक़्त हमने गुनगुनाती शामों के ख़्वाब बुने। शामें ही अंत नहीं थीं। हमने चमकती सुबह लाने का भी सपना देखा। लोग कहते थे दोनों पूरक हैं, झूठ है। इन दोनों में विरोध जन्मों पुराना है भले ही सतह पर न दिखे और आखिर बेसब्र सुबह ने शाम को गुनगुनाने न दिया।