Monday 31 October 2016

एनकाउंटर का बुखार आया है...

दाग दाग उजाला ...

धाँय धाँय की आवाज...मार डालो काट डालो चीर डालो फाड़ डालो
इंसान नहीं हैं हम ... जानवर थे जानवर हैं
हम एक धर्म बनायेंगें ... लोगों को लूटेंगें
हम एक राष्ट्र बनायेंगें ... लोगों को मारेंगें
अमेरिका मुर्दाबाद ... हमें अमेरिका बनना है।
गाँधी जिंदाबाद ... हमें गोडसे की मूर्ति बनानी है।

चश्मों से दुनियाँ देखेंगें ... रंगीन दिखेगी 
17 मारो या 1700 तुम हत्यारे हो और हम बुझदिल

मारो ……………………………………………………………………………………
चित्र : सुमेर

राख का रंग...

ख़त जले, किताब जली और जल गयी मेरी दुनिया, अब बस राख बची है, घनी काली राख
जैसे जलने के बाद सबकुछ काला हो जाता है, ठीक वैसे ही सूरज का ढलना और रात का होना, जताता है घने काले रंग की ताकत, वह रंग जिसपर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ता, मैंने अपना लिया है उस राख का रंग, जो राख हमारे खत, किताब और दुनिया की परिणति है, जिसका रंग अब कभी नहीं बदलेगा

चित्र: सुमेर सिंह राठौड़

दिवाली के बाद ...

दिवाली बीत गयी थी लेकिन रात बाकी थी। शहर में कोहरा फैला हुआ था। अख़बारों की सुर्ख़ियों में प्रदुषण की ख़बरें थी। भगवान गूँगा हो गया था और भक्त बहरे थे। चौराहे पर एक बच्चा पटाखों की राख में जिंदगी की चिंगारी ढूंढ रहा था। मेरी आँखों में उम्मीद की मौत का वह पानी था जिसकी जरुरत मुर्दा दुनियाँ को होली खेलने के लिए थी। त्यौहार में शहर था और शहर से गाँव दूर था।
चित्र : सुमेर

फिर भी जलते दीप देखकर गाँव याद आता है

धीरे-धीरे त्यौहार बदल रहे हैं। नई चीज़ें जुड़ती जाती हैं। घर-गाँव से दूर जिन चीज़ों को याद करते हैं दरअसल वो चीज़ें अब वहां से भी गायब हैं। मिलना-जुलना, खेल-कूद, खुद की बनाई चीज़ें, घर की बनी मिठाइयाँ। सब अब गाँव में भी बाज़ार से खरीदते हैं।

बस गाँव की प्रकृति किसी-किसी कोने में बची रह गई है। पेड़-पौधे और धरती, जानवर बचे हुए हैं। वही खींचते रहते हैं।
सुमेर

Saturday 29 October 2016

'लिसन अमाया' ज़िंदगी यादों से नहीं

"ज़िंदगी यादों से नहीं होती यादें ज़िंदगी का हिस्सा होती हैं"
यादें भी सच में रेत की तरह होती हैं। कई बार हम ज़िंदगी यादों के हिसाब से चलाने लगते हैं और उसमें हम अपने आसपास और खुद के होने को नहीं जी पाते। हमारे आस पास कितनी कहानियां हैं। कितने छोटे-छोटे खुशियों के मौके हैं। जाने क्यों हम हर जगह खरीददार बने रहते हैं, खुद नहीं होते।
'लिसन अमाया' आई लव ब्यूटिफुल सोल :)।

Friday 28 October 2016

क्रांति की साइकिल

JNU के विद्रोही जी मर गए लेकिन उनकी आत्मा अकलेश में घुस गयी और उन्होंने समाजवादी तरीके से सामन्तवादी परिवार से विदरोह कर दिया। पहली बार समाजवादी पार्टी में साम्यवादी क्रांति का प्रयोग हुआ है। कहाँ गए मार्क्स चचा के विरोधी जो कहते थे क्रांति नहीं होगी। जॉइंट फैमिली टूट रही है... खबर है कि समाजवादी पार्टी को जोडे रखने में RSS मदद करेगी ताकि संयुक्त परिवार की भारतीय संस्कृति सुरक्षित रहे। सब गोलमाल है।

Thursday 27 October 2016

जल थल जी में तू ही विराजे

अकेले नहीं होते हम कारवाँ में? राह में जो हाथ पकड़े छोड़ जाते हैं वो साथी होते हैं?
साल भर बाद अचानक से वो रास्ता रिवाइंड हो जाता है और हम ढूंढते हैं हाथ पर निशान कि अब भी राह में वो हाथ पकड़े चल रहे है।
गहराई रात में धूआं, छूटता हाथ और बैकड्रॉप में गा रहा कबीर 'जहाँ देखूं तू का तू'
सुनो इस राह में सब मुसाफिर है, नए मुसाफिर सफर मुबारक।


'तलाश' खुद की..!

अब निकल चुका हूँ मैं खुद की तलाशमें, बहुत पहले मैंने अपने भीतर जिसे पाया था, लंबे अरसे से उसे फिर नहीं देखा, शायद कहीं खो गया है वो, इस भीड़ में शामिल होते होतेया बन चुका है इसी भीड़ का हिस्सा जिसका होना सिर्फ दिखावा है, जिसकी खुद की कोई सच्चाई या तो होती नहीं और अगर होती है तो शायद कभी दिखती नहीं,
शायद इसी भीड़ में खो गया था मैं...

चित्र : अजय कुमार

Monday 24 October 2016

ख़त जले या जिंदगी...

उस दिन मैंने जला दिये थे सारे खत तुम्हारे, हरेक हर्फ़ जो हमदोनों की साझा किताब में लिखा जाना था। जिसे हमने न सिर्फ लिखा था बल्कि पिरोया था अपने एहसासों की गर्मी सेवो किताब अभी तक अधूरी है...
मैंने ख़त जला दिए थे मगर पाण्डुलिपि नहीं, क्योंकि उन ख़तों में अभी तक आग बाकी है,
और उस आग से अब तक जल रही है मेरी वो दुनिया, जो कभी हमारी हुवा करती थी.

चित्र: अजय कुमार

Thursday 20 October 2016

प्यार को गवाही की जरुरत नहीं

क्या आज सब कुछ कह दूँ ...? रात के अँधेरे से तुम्हें रोशनी की तरह देखना. डायरी के पन्ने पर तुम्हारे नाम लिखी अनेको अनभेजी चिठ्ठियों के शब्द. वह गीत जो मैंने गाया था गौरय्ये की जुगलबंदी में नदी के निर्झर तान के साथ. जाड़े की उस सुबह की बात जो धुंध के कारण मेरी नज़र तुमसे कह नहीं पाई.
लेकिन क्या ये सब कहना जरुरी है ?
अदालत में दी जाने वाली गवाही की तरह ! 
P.C.-Sumer Singh Rathore