सूरज ढल रहा था और मेरे मन का उत्साह भी। आसमान के साथ मुझपर भी अंधेरा छा
रहा था। मैं खोया हुआ महसूस कर रहा था जैसे किरणों के साथ ही ख़त्म हो जायेगी मेरी
जिंदगी से रौशनी भी। कहीं दूर जैसे झरने से गिरता पानी पत्थरों को गहरी चोट दे रहा
हो ठीक वैसा ही दर्द मेरे अंदर उठ रहा था। दर्द भी ऐसा जो चीर दे। ये एहसास ये
दर्द मेरी उदासी थी।
चित्र : अजय कुमार |
Mere savere bhi hain andhere bohot..
ReplyDeletedoobi hui har dhadkan hai..
na aas hai koi.. na intezar kisika..
khud hi ko mana raha hun.. khud hi se khafa hun main..
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete