अँगुलियों का रंग लाल था
और मुठ्ठी में लाल रंग की बेर भरी थी।
होठों पर लाल रंग की चमक और आँखों में लाल चुहलपन भरकर उसने एकबार देखा और पूरब की
छत पर एक सूरज निकलकर झांकने लगा।
बेर की खटास पूरे सृष्टि में फ़ैल गयी थी।
मुँह और आँख में पानी था। सिन्दूर
की एक रेख उत्तर से चढ़कर दक्खिन में कहीं उतर कर गुम हो गयी और मैं अकेले खड़ा रह
गया।
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