कितनी अजीब बात है न,
सबको पता हैं मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, पर तुम हो कि समझने की कोशिश भी नही
करती। सच कहूँ तो तुम मेरी समझ के परे हो। कभी-कभी लगता है जैसे "तुम एक पहेली हो जिसे मैं शायद कभी सुलझा ही न पाऊँ और मैं, मैं एक खुली किताब, जिसे तुम पढ़ने की कोशिश ही नहीं
करती" बस ये किताब खुद ही तुमसे अपनी व्याख्या करने को बेताब रहती है।
PC: Peeyush |
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