Tuesday 19 April 2016

हवा के रेतीले हाथ

ज्यों ज्यों दिन तप रहे है मुझे अपने रेगिस्तान की ठंडक लिए शामें याद आ रही है। दिन को आग हुई रेत शाम में सुहावनी हो जाती हैं। उस ठंडी रेत के आलिंघन में मोहब्बत हैं।
उस अथाह रेत में आजादी हैं, सपने हैं, मोहब्बत है। दिनभर की गर्म आंधी शाम की ठंडी रेत से टकराकर बालों से टकराती हैं तो लगता है जैसे बाल सहला रही हो। 
इस रेगिस्तानी रेत में अथाह प्रेम हैं।





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