ज्यों ज्यों दिन तप रहे है मुझे अपने रेगिस्तान की
ठंडक लिए शामें याद आ रही है। दिन को आग हुई रेत शाम में सुहावनी हो जाती हैं। उस
ठंडी रेत के आलिंघन में मोहब्बत हैं।
उस अथाह रेत में आजादी हैं, सपने हैं,
मोहब्बत है। दिनभर की गर्म आंधी शाम की ठंडी रेत से टकराकर बालों से
टकराती हैं तो लगता है जैसे बाल सहला रही हो।
इस रेगिस्तानी रेत में अथाह प्रेम हैं।
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