Wednesday 6 April 2016

ज़िंदगी कहीं लॉग-इन छूट गया फेसबुक अकाउंट...

अपनी किताबें और लेपटॉप एक तरफ रख दिये। आधी से ज्यादा रात उसकी आँखों में डूब गई। रात गहराते ही नींद खिड़की से भाग जाती है। पँखा एकटक देखता है उनींदी आँखों को। कभी कभी लगता है ज़िंदगी कम्प्युटर लैब में खुला रह गया फेसबुक अकाउंट है। जहां पर कोई मजाक में आपकी टाइमलाइन से वो शब्द पोस्ट कर जाता है जिनसे नसों में अफीम घुला हो।
सबको सन्मति दे भगवान।
फेसबुक माता की जय।


 (फोटो: सुमेर सिंह राठौड़)

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