जेएनयू
की सुनसान सड़क और उस पर मैं और तुम। पेड़ खड़े हैं और हमारी जिद्द के सामने वे सब भी
अड़े हैं। रात को बुलाने के लिए सुबह ने शाम को भेजा है। तुम्हारी सिगरेट से जिंदगी
धुँआ धुँआ हो गयी है। कोहरा सिगरेट की पाइप पर दम तोड़ लाश बन जाता है और कान में आके कह जाता
है कि मैं मर भले ही गया हूँ पर इस शाम की गवाही जरूर दूँगा।
चित्र साभार : अजय कुमार |
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