ये दिल्ली भी ना जाने कैसा शहर है लोगों को जगाया जाता है रातभर डंडा बजाकर की होशियार रहना। अब चैन से सोने देते नहीं क्या होशियार रहें। इससे अच्छा तो हमारे गाँव है और कुछ नहीं पर चैन की नींद तो है कम से कम। सोये रहो खर्राटे मार के। कोई टेंशन नहीं। यार बड़ा खराब शहर है कितने मजबूर होते है लोग जो ऐसे शहर में रहते है। खुद को मारकर जीते है।
No comments:
Post a Comment