Saturday 5 December 2015

उनींदे लोगों का शहर

ये दिल्ली भी ना जाने कैसा शहर है लोगों को जगाया जाता है रातभर डंडा बजाकर की होशियार रहना। अब चैन से सोने देते नहीं क्या होशियार रहें। इससे अच्छा तो हमारे गाँव है और कुछ नहीं पर चैन की नींद तो है कम से कम। सोये रहो खर्राटे मार के। कोई टेंशन नहीं। यार बड़ा खराब शहर है कितने मजबूर होते है लोग जो ऐसे शहर में रहते है। खुद को मारकर जीते है।

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