Monday 7 December 2015

पँछी उतरते क्यों नहीं

भीङ से ऊबकर हम खुलेपन में जाते है ताकि हमें एहसास हो आजादी का। एहसास हो कि इस भीङ भरे शहरों की बहुमंजिला इमारतों से परे भी दुनिया है।
सर्द दिनों में कुछ प्रवासी पँछी भी लम्बी उङानें तय करके तालाबों के किनारे खुले मैदानों में आते है।
लेकिन आजकल पँछी जमीन पर नहीं उतरते और न खुलापन दिखता है। दिखेगा कैसे हमने सब मैदान और जंगल तो ढक दिये ना विकास की चादर से।

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