'अन्न का देवता' मर रहा है। खेतों में
लाशों का जमघट है और कुदाल हथियार बन रहे हैं। पानी का रंग लाल है और सूरज डूबने
के इंतजार में है। सपने भी चादर ओढ़ के सो रहे हैं। पहाड़ डर से काँप रहे हैं। शायद
उन्हें नींद में मिर्गी आ रही है। लेकिन समय इतना भयावह है कि अब पेड़ों पर आधा कटा
सेब ही फलेगा? कहीं से आवाज आ रही है-ये दाग दाग उजाला...
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