बकरियों का झुण्ड सूरज के ढलने
की दिशा में बढता जाता है।
तेज धूप में कपड़ा
सिली बोतल से ग्वाला पानी गटकता है।
बकरी खींप में मुँह डालकर पत्तियां
चबाती है और
गले की घंटी रेगिस्तान में गूंज
उठती है।
मुझे ऐसे ही सपने आते है हमेशा।
मुझे सपना देखते हुए लगता है कि
एक आज़ादी है जिससे हम सब भाग
रहे है।
प्रकृति के नज़ारों की आज़ादी।
वनस्पति, धरती आकाश,
सबकुछ खुला-खुला अपना सा।
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