टोबा टेक सिंह कहाँ हैं? 68 साल
बाद भी यह सवाल लाखों 'इंसानों' के ख्याल में गूँज रहा है। विभाजन में लकीर होती है लेकिन दर्द इस बात का
ज्यादा है कि हम उस लकीर पर खड़े नहीं हो सकते। हमें उसे आर करना होता है या पार।
मंटो आज भी इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा है कि मिलजुलकर रहने वालों का वह
जमीन-ए-आसमाँ कहाँ हैं जहाँ सूरज अँधेरे की बजाय उजाला देता है।
चित्र साभार : अजय कुमार |
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