यह जगत सम्बन्ध का परिणाम है। धरती के
अस्तित्व में आसमान का भी अंश है जैसे घर में वासी का। सृष्टि का पेड़ न्याय की
मिट्टी पर ही खड़ा है। न्याय भी एक तरह का संबंध निर्धारक है जो दो पक्ष के मध्य के
संबंध-संतुलन का मापक है। लेकिन इस विचार
का मूल यह है कि न्याय तो मात्र एक यंत्र है, कार्य और परिणाम का निर्धारण तो मात्र
दोनों पक्ष ही कर सकते हैं।
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