ख़त जले, किताब जली और जल
गयी मेरी दुनिया, अब बस राख बची है, घनी
काली राख…
जैसे जलने के बाद सबकुछ काला हो जाता है, ठीक वैसे ही सूरज का ढलना और रात का होना, जताता है घने
काले रंग की ताकत, वह रंग जिसपर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ता,
मैंने अपना लिया है उस राख का रंग, जो राख हमारे खत, किताब और
दुनिया की परिणति है, जिसका रंग अब कभी नहीं बदलेगा
चित्र: सुमेर सिंह राठौड़ |
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