क्या आज सब कुछ कह दूँ ...? रात के अँधेरे से तुम्हें रोशनी की
तरह देखना. डायरी के पन्ने पर तुम्हारे नाम लिखी अनेको अनभेजी चिठ्ठियों के शब्द.
वह गीत जो मैंने गाया था गौरय्ये की जुगलबंदी में नदी के निर्झर तान के साथ. जाड़े
की उस सुबह की बात जो धुंध के कारण मेरी नज़र तुमसे कह नहीं पाई.
लेकिन क्या ये सब कहना जरुरी है ?
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