उस
दिन मैंने जला दिये थे सारे खत तुम्हारे, हरेक हर्फ़ जो
हमदोनों की साझा किताब में लिखा जाना था। जिसे हमने न सिर्फ लिखा था बल्कि पिरोया
था अपने एहसासों की गर्मी से, वो किताब अभी तक अधूरी है...
मैंने ख़त जला दिए थे मगर पाण्डुलिपि नहीं, क्योंकि उन ख़तों
में अभी तक आग बाकी है,
और उस आग से अब तक जल रही है मेरी वो
दुनिया, जो कभी हमारी हुवा करती थी.
चित्र: अजय कुमार |
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