दिवाली बीत
गयी थी लेकिन रात बाकी थी। शहर में कोहरा फैला हुआ था। अख़बारों की सुर्ख़ियों में प्रदुषण
की ख़बरें थी। भगवान गूँगा हो गया था और भक्त बहरे थे। चौराहे पर एक बच्चा पटाखों की
राख में जिंदगी की चिंगारी ढूंढ रहा था। मेरी आँखों में उम्मीद की मौत का वह पानी था
जिसकी जरुरत मुर्दा दुनियाँ को होली खेलने के लिए थी। त्यौहार में शहर था और शहर से
गाँव दूर था।
चित्र : सुमेर |
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