अकेले नहीं होते हम कारवाँ में? राह में जो हाथ पकड़े छोड़ जाते हैं वो साथी होते हैं?
साल भर बाद अचानक से वो रास्ता रिवाइंड हो जाता है
और हम ढूंढते हैं हाथ पर निशान कि अब भी राह में वो हाथ पकड़े चल रहे है।
गहराई रात में धूआं, छूटता हाथ
और बैकड्रॉप में गा रहा कबीर 'जहाँ देखूं तू का तू'।
सुनो इस राह में सब मुसाफिर है, नए मुसाफिर सफर मुबारक।
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