अब निकल चुका हूँ मैं ‘खुद की तलाश’ में, बहुत पहले
मैंने अपने भीतर जिसे पाया था, लंबे अरसे से उसे फिर नहीं देखा, शायद कहीं खो गया है वो, इस भीड़ में शामिल होते होते, या बन चुका है इसी भीड़ का हिस्सा जिसका होना सिर्फ दिखावा है,
जिसकी खुद की कोई सच्चाई या तो होती नहीं और अगर होती है तो शायद
कभी दिखती नहीं,
शायद इसी भीड़ में खो गया था मैं...
चित्र : अजय कुमार |
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