Tuesday 1 November 2016

स्वप्न, साथी और उलटबांसियाँ।

जीवन कभी-कभी उलटबांसी लगता है। चीज़ें उल्टी नज़र आती है।
मेट्रो में दो डिब्बों के बीच बुढिया घास की गठरी लिए मतीरा खा रही है। पुरानी दिल्ली के बाज़ार में रेतीले टीले पर चरवाहा अलगोजा बजा रहा है। अक्षरधाम मंदिर के आगे शांत रात में झींगूरों की आवाज़ें के बीच तारों से भरा आसमान चमक रहा है। पुरानी प्रेमिका अचानक से मुस्कराकर हाल पूछती है।

साथी थोड़ी देर और बालों में हाथ फिराओ ना।



फोटो- सुमेर सिंह राठौड़

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