इंतज़ार... भला तुम क्या जानो क्या
होता है? तुम्हें तो कभी जरूरत ही नहीं पड़ी इंतज़ार करने की। और मेरे लिए तो बेशक, कभी
इंतज़ार नहीं करना पड़ा तुम्हें। जब भी तुमने चाहा मैं हमेशा तुम्हारे पास था। भैतिक
रूप से ना सही पर मेरा आभास था। शायद इसीलिए तुम नहीं जानते इंतज़ार की अहमियत। जब एक
एक पल सूए की नोक सा चुभने लगे तो समझ लेना तुम भी इंतज़ार करना सीख गये हो।
चित्र: अजय कुमार |
लेखन में जादू और समर्पण का आत्मविश्वास है। यह मुझे आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित कर रहा है।
ReplyDeleteखूबसूरत लिखे हैं अजय बाबू! सुएँ की नोक से पल एक अच्छी उपमा है :)
ReplyDeleteखूबसूरत लिखे हैं अजय बाबू! सुएँ की नोक से पल एक अच्छी उपमा है :)
ReplyDeleteशुक्रिया vrishali... आप लोगों की बहुत याद आती है यार अब नहीं आयेंगे वो दिन जब हम 6 लोग साथ में मंडी हाउस जाते थे.
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