'मैं समय हूं।'
मैं हंसता था यह सुनकर। पर अब समय हंस रहा है। कम
वक्त में चीज़ें इधर की उधर हो जाती है। रिश्तों की परिभाषा बदल जाती है।
समय जैसे रबर हो। हम पेंसिल छीलकर लिखते जाते हैं
सुंदर शब्द और रब्बर मिटाता जाता है। यह कहते हुए कि लिखे को भूलकर और लिखो।
पर जो अमिट छप गया कैसे मिट सकता है। ज़ेहन के
रोजनामचे में दर्ज है जो होगा हिसाब उसका।
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