Sunday 28 August 2016

पानी का गीत और रेत की धुन

जाड़े के मौसम में वह बसंत की तरह आया था और मैंने उसे रात के एकांत में महसूस किया. सुबह मुलायम-सा सूरज निकला तो वह रोशनी की किरन बना और मैं दूब पर पड़ी ओस की बूंद और हमने मिलकर रचा एक अनंत दूरी का इन्द्रधनुष. धूप की बारिश में मैंने गंगा के गीत गाए और उसने रेत की धुन छेड़ी. वक्त ने छुट्टी की घंटी बजायी और प्रेम  जन्म के पूर्व ही निर्वासित हुआ.
PC : Sumer

2 comments:

  1. शुक्रिया प्रोत्साहन के लिए...😊

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  2. शुक्रिया प्रोत्साहन के लिए...😊

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