Friday 17 March 2017

कवि मसीहा नहीं होता लेकिन उसकी कविता हमारी जिंदगी का जरूरी अंग है।

प्रश्न : कविता की जरूरत क्या है ?
“बेन ओकरी : वर्तमान दुनिया में जहां बंदूकों की होड़ लगी हुई है, बम-बारूदों की बहसें जारी हैं और इस उन्माद को पोसता हुआ विश्वास फैला है कि सिर्फ हमारा पक्ष, हमारा धर्म, हमारी राजनीति ही सही है, दुनिया युद्ध की ओर एक घातक अंश पर झुकी हुई है। ईश्वर जानता है कि किसी भी समय के मुकाबले हमें कविता की जरूरत आज कहीं ज्यादा है।“

पुत्र के शिक्षक को अब्राहम लिंकन का पत्र

सम्माननीय सर

नकल करके पास होने से फेल होना अच्छा है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे सीखना होगा। उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
P.C.-Peeyush Parmar

केदारजी की कविताओं में दूब

केदारनाथ सिंह के लिए पृथ्वी मनुष्य का घर है इसीलिए यह सुन्दर और समर्थ है। केदारजी की कविताओं में अकाल में भी दूब बची रह जाती है। दूब में आशा-विश्वास और जीवन सौन्दर्य की अनुभूति है। दुःख अनिवार्य है इसीलिए केदार जी की कविताओं में वह सहज-साधारण और खूबसूरत है। अगर स्मृति और साहस हो तो दुःख के बीच से ही आनंद का रास्ता फूटता है।

“अभी बहुत कुछ बचा है
अगर बची है दूब”
P.C.-Peeyush Parmar

Thursday 16 March 2017

सुर का संघर्ष

परिंदे को एक गीत गाना था। गीत का ऊंचा सुर अपराध था, इसलिए गवाह बुलाए गए। उसने आकाश को आवाज दी और रची एक अपनी जमीन। उसके गीत से बारिश हुई, बारिश से उसके पंख भींगे, भींगे पंखों से उसने एक ऊंची उड़ान भरी। इंसान की आत्माएं मर रही थीं। परिंदे ने गीत का सबसे ऊंचा आपराधिक सुर इंसान की आत्मा की सांस से जोड़ा और बसंत लिए जीवन लौट आया। दुनिया खूबसूरत हो गयी।
P.C.- Peeyush Parmar

Friday 4 November 2016

कलयुगी ज्ञान : नमक का दारोगा - प्रेमचंद

नौकरी में ओहदे पर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढावे-चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृध्दि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं।
P.C.-Peeyush Parmar

Thursday 3 November 2016

पूंजीवादी - खलील ज़िब्रान

एक टापू पर मैंने ऐसा जीव देखा जिसका सिर मनुष्य का था और पीठ लोहे की। वह बिना रुके धरती को खा रहा था और समुद्र को पी रहा था। मैंने पूछा, क्या तुम्हारी भूख कभी नहीं मिटी और प्यास कभी शान्त नहीं हुई?"
वह बोला, "मैं सन्तुष्ट हूँ। मैं खाते-खाते और पीते-पीते थक चुका हूँ लेकिन मुझे डर है कि कल को खाने के लिए धरती और पीने के लिए समन्दर नहीं बचेगा।"
PC : PEEYUSH PARMAR

Wednesday 2 November 2016

नेशन वांट्स टू नो बट व्हाट..!

वो बात करते करते चिल्लाने लगे, और बोले तुम्हें मेरे सवालों का जवाब देना होगा’, मैंने कहा हर सवाल का जवाब दिया है मैंने’, वो बोले नहीं, जवाब तुम्हारे नहीं हमारे होंगे, तुम वही बोलना जो हमें सुनना है, जो देश जानना चाहता है’, मैंने स्तब्ध होकर पूछा देश क्या जानना चाहता है, आप कैसे तय करेंगे?’

वो मुस्कुराकर बोले हम तय करेंगे, क्योंकि हमारी टीआरपी सबसे ज्यादा है, और हम तुमसे ऊंचा बोलते हैं

चित्र: अजय कुमार

Tuesday 1 November 2016

स्वप्न, साथी और उलटबांसियाँ।

जीवन कभी-कभी उलटबांसी लगता है। चीज़ें उल्टी नज़र आती है।
मेट्रो में दो डिब्बों के बीच बुढिया घास की गठरी लिए मतीरा खा रही है। पुरानी दिल्ली के बाज़ार में रेतीले टीले पर चरवाहा अलगोजा बजा रहा है। अक्षरधाम मंदिर के आगे शांत रात में झींगूरों की आवाज़ें के बीच तारों से भरा आसमान चमक रहा है। पुरानी प्रेमिका अचानक से मुस्कराकर हाल पूछती है।

साथी थोड़ी देर और बालों में हाथ फिराओ ना।



फोटो- सुमेर सिंह राठौड़

Monday 31 October 2016

एनकाउंटर का बुखार आया है...

दाग दाग उजाला ...

धाँय धाँय की आवाज...मार डालो काट डालो चीर डालो फाड़ डालो
इंसान नहीं हैं हम ... जानवर थे जानवर हैं
हम एक धर्म बनायेंगें ... लोगों को लूटेंगें
हम एक राष्ट्र बनायेंगें ... लोगों को मारेंगें
अमेरिका मुर्दाबाद ... हमें अमेरिका बनना है।
गाँधी जिंदाबाद ... हमें गोडसे की मूर्ति बनानी है।

चश्मों से दुनियाँ देखेंगें ... रंगीन दिखेगी 
17 मारो या 1700 तुम हत्यारे हो और हम बुझदिल

मारो ……………………………………………………………………………………
चित्र : सुमेर

राख का रंग...

ख़त जले, किताब जली और जल गयी मेरी दुनिया, अब बस राख बची है, घनी काली राख
जैसे जलने के बाद सबकुछ काला हो जाता है, ठीक वैसे ही सूरज का ढलना और रात का होना, जताता है घने काले रंग की ताकत, वह रंग जिसपर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ता, मैंने अपना लिया है उस राख का रंग, जो राख हमारे खत, किताब और दुनिया की परिणति है, जिसका रंग अब कभी नहीं बदलेगा

चित्र: सुमेर सिंह राठौड़